Wednesday, February 23, 2011

बदलते रिश्ते




मै जब भी उस से मिलती हूँ
क्यों उस जैसी हो जाती हूँ
उसके ख्यालो को सोचती हूँ
उसकी ही आहटो पे चलती हूँ
उसकी दी हुई बोली ही बोलती हूँ
फिर भी क्यों वो ....
मेरी तरह नहीं सोचता
मेरी बोली क्यों नहीं बोलता ?

मै उसके दिल को पढ़ती हूँ
उसके शब्दों को लिखने से पहले
समझती हूँ ...
उसकी सांसो को जीती हूँ
उसी के दिए नगमे गाती हूँ
उसकी यादो को दिल में बसा
सपनो की एक हसीन दुनिया सजा
उसी में खो जाती हूँ ...
फिर भी क्यों वो ......
मेरी तरह नहीं सोचता
मेरी बोली क्यों नहीं बोलता ?

वहीँ तो घर था मेरा
वहीँ तो मै उस संग खेली थी
पहला घर घर अपना
वहीँ तो मैंने अपने सपनो की
दुनिया सजाई थी
आज वो बिछड़ गया है
उसकी अगल ही दुनिया है
अलग है सपने उसके
बदल गयी है हम दोनों की तकदीरे
अब किस उम्मीद से मै अब ये कहूँ..

कि क्यों नहीं वो मेरे जैसा सोचता????????
(अंजु ....(अनु )

माचिस की तीली



क्या कभी माचिस की तीली को जलते देखा है आपने ?
रोशनी से भरपूर वो
पर पल भर में ढेर वो
घर के चिरागों को
रोशन करती वो
चुल्हा जला
भूखे को रोटी का
आसरा देती वो
भटके पथिक की
रोशनी की किरण
चुपचाप बिन बोले
हर बार ....बार बार
जलती वो .......

कभी कूड़े के ढेर को
राख में बदलती वो
मंदिर में जलते दीये
की पवित्र अग्नि वो
हर चिंगारी की शुरुआत वो
खुद को आग की
लपटों में खो जाने का
गम सहती वो
अपनी ही नियति से लड़ती
'' माचिस की तीली वो ''
क्या कभी माचिस की तीली को जलते देखा है आपने ?
(अंजु ..........(अनु ).