Wednesday, February 29, 2012

मेरा पहला काव्यसंग्रह क्षितिजा .....और उस अवसर पर आये ब्लोगर दोस्तों से मुलाकात का एक अनूठा यादगार दिन ....

 बाएँ से दाएँ.........उद्‍भ्रांत जी, रामकुमार कृषक जी  ,फिर हम खड़े हैं (अनु ) , यशवंत सिंह जी , इमरोज जी (प्रसिद्ध चित्रकार ) और  वरिष्ठ कवि विजय शंकर जी....और साथ में मंच संचालक ...प्रमोद जी |


२७ फरवरी ...२०१२ ...दिन ..सोमवार ....

मेरे पहले कविता संग्रह....क्षितिजा  का विमोचन हुआ ...ये दिन किसी भी लेखक के लिए यादगार रहता हैं ...पर ये दिन मेरे लिए उस से भी ज्यादा महत्व रखता हैं क्यूँ कि इस दिन को यादगार बनाने में ..मेरे सभी ब्लोगर दोस्त ...और ऑरकुट के कुछ दोस्त जो सिर्फ मेरे एक बार कहने से मेरा साथ देने चले आये ...उन सबका मैं दिल से आभार करती हूँ ...(आभार शब्द छोटा है ...दोस्ती के आगे )| मेरे परिवार और दोस्ती का ये जमावड़ा ..एक अनूठा सा मेल था उस दिन मेरे लिए |




मेरे पति महेंद्र चौधरी जी ...जिनका मैंने बेसब्री से इंतज़ार किया था ...वक्त पर आ कर उन्होंने ने मेरा मान रखा |

 इनके बाद मैं सुनीता शानू ,मह्फूस अली और मुकेश सिन्हा का धन्यवाद करना चाहूँगी...जिनकी मदद के  बिना उस दिन मेरे काव्यसंग्रह का विमोचन नहीं हो पाता | (संजीव तिवारी जी जो साथ ना होते हुए भी हर वक्त साथ थे ..)





                                 मुकेश की इस से मस्त फोटो ओर कोई नहीं लगी ...तभी इसे ही लगा दिया

 सुमित प्रताप सिंह   ,राजीव तनेजा  , पी.के शर्मा जी ....

अविनाश वाचस्पति जी (अन्नाभाई ),सुनीता शानू जी  और साथ में फिर से मैं (अनु)


वंदना गुप्ता ,संजू तनेजा ,सुनीता जी हमसे बात करती हुई ..पीछे मुकेश सिन्हा ,वेद व्यथित जी (जिन्होंने क्षितिजा के लिए अपने कुछ शब्दों में समीक्षा लिखी )..और आगे हरी शर्मा जी (जयपुर वाले )...एक दोस्त और जिनका नाम हम पता  नहीं कर पाए ...

यहाँ मह्फूस ...संजू तनेजा के साथ अपनी वाली मस्त स्टाईल में बैठे हैं ...बिंदास

आनंद जी ,वंदना  जी ,सुनीता जी ,इमरोज जी और साथ मैं  ( अनु...सोचा चलो हम भी इन सबके साथ खड़े हो जाये .....जिस से कुछ ओर लोग भी  हम को जानने लगे )

ये काली टीशर्ट में ..शिवम जी हैं ....और साथ में अभिषेक कुमार ( और ये हैं इनकी मुहंबंद हँसी )


हम सबके बीच आनंद जी ...देखिए तो कैसे मुस्कुरा रहे हैं ...

बाएं में सबसे पहले मैं (अनु)...फिर दिव्या जी और पवन जी (पति,पत्नी ) फिर राघवेन्द्र सिंह जी (राघव कवि ) और पवन जिंदल जी (ऑरकुट के वक्त के दोस्त हम सब साथ थे उस दिन )


ये पद्म भाई को देखो ...कैसे शान से बैठे है ...सबके बीच ....(सुमित जी कुछ सोचते हुए भी अच्छे लग रहे हैं )

 आर .के गुप्ता जी ..ये भी ऑरकुट के वक्त के दोस्त हैं जो अब फेस बुक पर भी साथ हैं ...ये भी विमोचन के वक्त हम सबके साथ थे

अरे पद्म भाई ..ये मन्च दिखा कर किसे चिड़ा रहे हो ...

हरकीरत जी ( गुलाबी सूट में ...इनके भी काव्य संग्रह का विमोचन था ),अवंतिका और सुनीता जी (कुछ सोचती हुई सी )...बाकि सब ब्लोगर मित्र इन में संतोष जी और शहनवाज जी भी शामिल हैं ...पर अभी यहाँ दिख नहीं रहे और कुछ मेरे परिवार के सदस्य

 राजीव जी ...घौंसला ब्लॉग वाले
ये  हैं पंकज ...मेरे ऑरकुट के वक्त का दोस्त ...जिसने मुझे उस वक्त मेरा ब्लॉग ...अपनों का साथ बना कर  दिया था ....ये भी उस दिन हम सबके साथ था ...पर छिपा हुआ सा ...थोडा दूर दूर
 ये हैं कृष्ण जी ...जो उस दिन पंकज के साथ आये थे ...ये हमारे साथ फेसबुक पर हैं

ये हैं गुंजन अग्रवाल (हरी साड़ीमें )और अनुपमा त्रिपाठी जी(नीली साड़ी में ) ....ये हम सबको वहाँ विमोचन के समय मिली ....जो कि अपने ही काव्यसंग्रह के विमोचन पर आई हुई थी .....इन से ये मुलाकात हमेशा याद रहेगी
ये हैं हम (अनु) कविता पाढ़ करती हुई (चहरे को देखो कैसे १२ बजे पड़े हैं ...पहली बार जो ऐसे बोलने का मौका आया था सबके सामने ..उफ्फ्फ्फ्फ़ )

और अब देखो ....कविता सही से बोल लेने के बाद कैसे राजीव जी (लग रहे हैं ना मेरे भाई )के साथ हसंते हुए फोटो खिंचवाई  हैं 

 इन सब के अतिरिक्त ..नारद ब्लॉग के कमल सिंह ,जात देवता संदीप जी ,नवीन दुबे जी ...और प्रवीण आर्य जी भी सबके साथ उस पुस्तक मेले और विमोचन में उपस्थिति थे और अशोक अरोड़ा जी ...महेंद्र श्रीवास्तव जी (आधा सच ब्लॉग वाले ) इनकी शुभकामनएं मुझे मोबाइल पर मिली ....जो वहाँ साथ ना होते हुए भी साथ थे

                  
और ये हैं मेरी बेटी(जो मेरी  ना हो कर भी मेरी हैं )मेरा बेटा ...अगर ये उस दिन साथ ना होते तो ...इनके बिना ये विमोचन अधूरा ही रहता ...पलक और दिशांत
हां जी ये हैं मेरा छोटा बेटा रोहण जो उस दिन नहीं आ पाया था ..पर उसने मोबाइल पर अपनी शुभकानाएं दी थी |



और कुछ मेरे दोस्त जिनके सहयोग के बिना मेरी क्षितिज कभी नहीं आती ...वो हैं नीता कोटेचा और विवेक (रायसन ...भोपाल से )   ये साथ ना होते हुए भी हर वक्त मेरे साथ थे |

                                                            नीता कोटेचा


विवेक दुबे जी  (रायसन ...भोपाल से ) 

यहाँ  सभी अथितियों का और हिंदी युग्म के शैलेश जी का आभार ...जिनकी वजह से आज क्षितिजा आप सबके बीच हैं


अंजु(अनु)

















Thursday, February 16, 2012

क्षितिजा, का सादर आमंत्रण..........विश्व पुस्तक मेला प्रगति मैदान, नई दिल्ली




मैं अंजु चौधरी 
अपनी  पहली कविता संग्रह "क्षितिजा" के विमोचन अवसर पर आप सबको  दिल से आमंत्रित करती हूँ.  आपकी उपस्थिति और शुभकामनायें मुझे संबल देंगी और नव सृजन के लिये प्रोत्‍साहित करेंगी.


प्रगति मैदान में पुस्तक विमोचन के साथ साथ ... मुझ जैसे कुछ ब्‍लॉगर एक  ब्‍लॉगर मिलन  की इच्छा भी रखते हैं इस लिए आप सब दोस्तों से निवेदन हैं कि हम, आप सभी ब्‍लॉगर मित्रों को २७ फरवरी को इस अवसर पर आने निमंत्रण देते हैं कि आप सब वहाँ उपस्थिति रह कर इस पल को यादगार बनाएं



कृपया आप लोग अपने आने की सूचना.. मुझे अंजु (अनु) चौधरी ..राजीव तनेजा जी ,पद्म सिंह जी और  को अवश्य दे .. ...



आप सब की  उपस्थिति मेरा और अन्य नए आने वाले लेखकों का हौंसला बढाएगी, मैं उम्मीद करती हूँ, आप लोग सपरिवार समय से उपस्थित रहेंगे..."

दिल से धन्यवाद 



दिन- सोमवार, 27 फरवरी 2012
समय- शाम 5 से 8 बजे तक
 स्थान- कॉन्फ्रेरेंस रूम नं 2, हॉल नं 6, विश्व पुस्तक मेला
प्रगति मैदान, नई दिल्ली।

अंजु (अनु) चौधरी एवं शैलेश भारतवासी ( हिंदी युग्म )

संपर्क सूत्र ....अंजु (अनु)...09034211912
राजीव तनेजा ......09810821361
शैलेश  भारतवासी ....09873734046.......09968755908
 

Tuesday, February 7, 2012

ख्याब ,प्यार और अलगाव





विजय कुमार सप्पत्ती जी के ब्लॉग पर .......मर्द और औरत ... कविता पढ़ने के बाद ....कुछ विचार उभरे ..जो शब्दों के  रूप में आपके सामने लेकर आई हूँ  ...

ख्याब ,प्यार और  अलगाव
अपने ख्यालो में मैं
मुद्दत से तुम से ही
मोहब्बत करती थी
रातो को जागती
और कभी सोती थी
खुद ही रोती थी ,
और आहें भी भरती थी ,
पर तुमसे कहते हुए
डरती थी ||

ना थी फूलो की तमन्ना
ना थी कभी किसी
गुलदस्ते की हसरत थी
मुझे तो खुद की
मोहब्बत से ,प्यार था
क्या कहूँ ,खुद को
एक भभकती मैं खुद में ही
एक आग थी |

ये प्रेम ...
एक अजीब सी आग में जल रहा था
जिसमें ,शीतलता और जलन 
एक साथ थी ,
पर मुझ पर ,
ये आग बन कर बरसी तो ....
मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||

इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया  ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने  विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||

अनु